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Saturday, 25 July 2015

हरिवंशराय बच्चन

-हरिवंशराय बच्चन की बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ-
"जब मुझे यकीन है के भगवान मेरे साथ है।
तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता के कौन कौन मेरे खिलाफ है।।" 
+
तजुर्बे ने एक बात सिखाई है...
एक नया दर्द ही...
पुराने दर्द की दवाई है...!
+
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है
+
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती..
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!
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जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन
क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
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एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
+
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
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सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
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जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
+
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
+
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..
+
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..
+
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..
+
चाहता तो हु की ये दुनिया बदल दूं ....
पर दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों
+
यूं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे
पता नही था की, 'कीमत चेहरों की होती है!!'
+
"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं,
एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'
+
" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"
+
किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,
'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब ना कर .....

मुश्किलें जरुर है, मगर ....

मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूँ मैं.
मंज़िल से ज़रा कह दो, अभी पहुंचा नही हूँ मैं.

कदमो को बाँध न पाएंगी, मुसीबत कि ज़ंजीरें,
रास्तों से ज़रा कह दो, अभी भटका नही हूँ मैं.

दिल में छुपा के रखी है, लड़कपन कि चाहतें,
दोस्तों से ज़रा कह दो, अभी बदला नही हूँ मैं..

Friday, 24 July 2015

साहिर लुधियानवी....

लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई......
इस राज़ को क्या जाने साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई

जाग ए मेरे हमसाया ख़्वाबों के तसलसुल से
दीवारों से आँगन में अब धूप उतर आई

चलते हुए बादल के साये के त-अक्कुब में
ये तशनालबी मुझको सहराओं में ले आई

ये जब्र भी देखे हैं तारीख की नज़रों ने
लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सज़ा पायी

क्या सानेहा याद आया मेरी तबाही का
क्यूँ आपकी नाज़ुक सी आँखों में नमी आई....

56 भोग

56 (छप्पन) भोग क्यों लगाते है...???
भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है |
इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है |
यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है |
अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे
कई रोचक कथाएं हैं |
ऐसा भी कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी |
अर्थात्...बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे |
जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया |
आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है, सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और मैया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ।
भगवान के प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56
व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया |
गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग...
श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों |
श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी |
व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया |
छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां...
ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं।
उस कमल की तीन परतें होती हैं...
प्रथम परत में "आठ",
दूसरी में "सोलह",
और
तीसरी में "बत्तीस पंखुड़िया" होती हैं |
प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं |
इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है |
56 संख्या का यही अर्थ है |
-:::: छप्पन भोग इस प्रकार है ::::-
1. भक्त (भात),
2. सूप (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (सिखरन),
7. अवलेह (शरबत),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मठरी),
13. फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी),
15. शतपत्र (खजला),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चोला),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसू),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (पगी हुई),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. परिखा,
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (बिलसारू),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी),
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (सीरा),
43. लसिका (लस्सी),
44. सुवत,
45. संघाय (मोहन),
46. सुफला (सुपारी),
47. सिता (इलायची),
48. फल,
49. तांबूल,
50. मोहन भोग,
51. लवण,
52. कषाय,
53. मधुर,
54. तिक्त,
55. कटु,
56. अम्ल.

Wednesday, 22 July 2015

ठीक नहीं....

कौन समझाए उन्हें इतनी जलन ठीक नहीं,,
जो ये कहते हैं मेरा चाल-चलन ठीक नहीं..!!

झूठ को सच में बदलना भी हुनर है लेकिन,,
अपने ऐबों को छुपाने का ये फन ठीक नहीं..!!

उनकी नीयत में ख़लल है तो घर से ना निकलें,,
तेज़ बारिश में ये मिट्टी का बदन ठीक नहीं..!!

शौक़ से छोड़ के जाएँ ये चमन वो पंछी,,
जिनको लगता है ये अपना वतन ठीक नहीं..!!

हर गली चुप सी रहे, और रहें सन्नाटे,,
मेरे इस मुल्क में ऐसा भी अमन ठीक नहीं..!!

जो लिबासों को बदलने का शौक़ रखते थे,,
आखरी वक़्त ना कह पाए क़फ़न ठीक नहीं..