Search This Blog

Saturday, 4 June 2022

જીવનની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

એક વૃદ્ધ મહિલા બસમાં મુસાફરી કરી રહી હતી. આગળના સ્ટોપ પર એક સુંદર મજબૂત યુવતી બસમાં ચઢી અને વૃદ્ધ મહિલાની બાજુમાં બેઠી. થોડીવાર પછી તેને બાજુ માં બેઠેલી વૃદ્ધ મહિલાને ધક્કા મારવા નુ ચાલુ કર્યુ અને તેના સામાન ને પણ પગ થી લાતો મારવા લાગી. યુવતીએ જોયું કે વૃદ્ધ મહિલા તેના આ ખરાબ કૃત્ય કરવા છતાં ચૂપ છે તો પછી તે યુવતી એ તેમને પૂછ્યું "મેં તમારી સાથે આવુ દુષ્કર્મ કર્યું છતાં તમે ચૂપ છો? તમે કોઇ ફરિયાદ કેમ ન કરી ?"

 

વૃદ્ધ મહિલાએ હસીને જવાબ આપ્યો :

 

"આટલી નાની-નાની બાબતોમાં અને અસભ્યતા પર ચર્ચા કરવાની મને જરૂર જ ના લાગી. કારણ કે મારી તમારી સાથેની આ સફર બહુ ટૂંકી છે અને હું આગળના સ્ટોપ પર જ ઉતરી જવાની છું."

 

 આ જવાબ સુવર્ણ અક્ષરે લખવા લાયક છે.

 

"આવી તુચ્છ બાબત પર ચર્ચા કરવાની જરૂર જ નથી, કારણ કે મારો તમારી સાથેનો પ્રવાસ બહુ ટૂંકો છે"

 

આપણે દરેકે આ સમજવું એટલુ જ જરુરી છે કે આ દુનિયામાં આપણો સમય એટલો ઓછો છે કે તેને નકામી દલીલો, ઈર્ષ્યા, અન્યોને માફ ન કરવા, નારાજગી અને ખરાબ વર્તન પાછળ વ્યર્થ થાય તે યોગ્ય તો ના જ ગણાય.

 

કોઈએ તમારું હૃદય તોડ્યું છે ? શાંત રહો. કારણ કે જીવન ની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

 

શું કોઈએ તમને છેતર્યા, ધમકાવ્યા અથવા અપમાનિત કર્યા છે? આરામ કરો. તણાવ ન કરો. કારણ કે જીવન ની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

 

કોઈ કારણ વગર તમારું અપમાન કરે છે ? શાંત રહો. અવગણના કરો. કારણ કે જીવન ની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

 

કોઇ પાડોશીએ એવી ટિપ્પણી  કરી કે જે તમને પસંદ ન આવી ? -શાંત રહો, તેની તરફ ધ્યાન ન આપો. તેને માફ કરી દો. કારણ કે જીવન ની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

 

કોઈએ તમને કઈ સમસ્યા કે મુશ્કેલી આપી છે? એને ભુલી જાવ. કારણ કે જીવન ની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

 

કોઈને ખબર નથી કે આપણી મુસાફરી કેટલી લાંબી છે. કોઈને ખબર નથી કે તે તેના અંત પર ક્યારે પહોંચશે ? તો મિત્રો અને કુટુંબીજનોની કદર કરીએ, આદર, દયાળુ અને ક્ષમાશીલ બનીએ. આખરે આપણે કૃતજ્ઞતા અને આનંદથી ભરાઈ જઈશું.

 

 તમારું સ્મિત દરેક સાથે વહેંચો. કારણ કે જીવન ની યાત્રા બહુ જ ટૂંકી છે.

 

मुसाफिर.....हुँ यारों,

ना घर है ना ठिकाना !

मुझे चलते जाना है...

बस चलते जाना ।।

हनुमान की रामायण

जब वाल्मीकि ने अपनी रामायण पूरी की, तो नारद ने कहा 'यह अच्छी है, लेकिन हनुमान की रामायण बेहतर हैं।  ' इससे वाल्मीकि हैरान रह गए और उन्होंने पाया कि एक केले के पेड़ की 7 चौड़ी पत्तियों पर हनुमानजी की रामायण अंकित है।  उन्होंने उसे पढ़ा और पाया कि वह एकदम सही है।  व्याकरण और शब्दावली, छंद और माधुर्य का सबसे उत्तम उदाहरण।  वह अभिभूत हो गए और रोने लगे।  
'क्या यह इतनी बुरी है?  ' हनुमानजी ने पूछा।  
'नहीं, यह बहुत अच्छी है', वाल्मीकि ने कहा, 
'फिर तुम क्यों रो रहे हो?  ' हनुमानजी ने पूछा।  
'क्योंकि आपकी रामायण पढ़ने के बाद कोई मेरी नहीं पढ़ेगा,' वाल्मीकि ने उत्तर दिया।  
यह सुनकर हनुमानजी ने केले के पत्ते फाड़ दिए और कहा 'अब कभी कोई मेरी रामायण नहीं पढ़ेगा! 
' ' लेकिन क्यों ?  ' वाल्मीकि ने पूछा।  
हनुमानजी ने कहा, 'तुम्हें मुझसे ज्यादा तुम्हारी रामायण की जरूरत है। तुमने अपनी रामायण इसलिए लिखी ताकि दुनिया तुम्हें याद रखे;  मैंने अपनी इसलिए लिखी ताकि श्रीराम मुझे याद रहे।'
'उस समय वाल्मीकि ने महसूस किया कि वे कैसे प्रसिद्धि की इच्छा से ग्रसित हैं।  उन्होंने स्वयं को मुक्त करने के लिए यह कार्य नहीं किया था।  जैसे उनकी रामायण महत्वाकांक्षा की उपज थी, लेकिन हनुमानजी की रामायण भक्ति की उपज थी।  इसलिए हनुमानजी की रामायण इतनी बेहतर थी। 
हमारे जीवन में हनुमान जैसे लोग हैं जो प्रसिद्ध नहीं होना चाहते हैं।  वे सिर्फ अपना काम करते हैं और अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं।  हमारे जीवन में भी कई अनकहे 'हनुमान' हैं।  हमारे जीवनसाथी, माता-पिता, मित्र, सहकर्मी।  आइए उन्हें याद करें और उनके प्रति आभारी रहें।

Tuesday, 17 May 2022

न्यायधीश का दंड

अमेरिका में एक पंद्रह साल का  लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। 

जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, *"क्या तुमने सचमुच चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट"?

लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया- जी हाँ।

जज :- क्यों ?

लड़का :- मुझे ज़रूरत थी।

जज :-  खरीद लेते।

लड़का :- पैसे नहीं थे।

जज:- घर वालों से ले लेते।

लड़का:- घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी।

जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ?

लड़का:- करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।

जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते?

लड़का:- सुबह से घर से निकला था, लगभग पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।

जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और विशेषतौर से ब्रैड की चोरी बहुत ही शर्मनाक अपराध है और इस अपराध के हम सब ज़िम्मेदार हैं।

  "अदालत में मौजूद हर शख़्स.. मुझ सहित सभी अपराधी हैं, इसलिए यहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं जा सकेगा।"

ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से इंसानियत न रख कर उसे पुलिस के हवाले किया।

अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म देगी।

जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी चाहती है।

फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के की भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।

क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं?

 चाणक्य ने कहा था कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए।
...........

Sunday, 6 March 2022

मैं सोच रहा हूँ अगर तीसरा युद्ध हुआ तो..

मैं सोच रहा हूँ अगर तीसरा युद्ध हुआ तो,
इस नई सुबह की नई फसल का क्या होगा।
मैं सोच रहा हूँ गर जमीं पर उगा खून,
इस रंग महल की चहल पहल का क्या होगा।

ये हंँसते हुए गुलाब महकते हुए चमन,
जादू बिखराती हुई रूप की ये कलियाँ।
ये मस्त झूमती हुई बालियाँ धानों की,
ये शोख सजल शरमाती गेहूँ की गरियाँ।

गदराते हुए अनारों की ये मंन्द हँसी,
ये पैंगें बढ़ा बढ़ा अमियों का इठलाना,
ये नदियों का लहरों के बाल खोल चलना।
ये पानी के सितार पर झरनों का गाना

नैनाओं की नटखटी ढिठाई तोतों की,
ये शोर मोर का भोर भृंग की ये गुनगुन।
बिजली की खड़कधड़क बदली की चटकमटक,
ये जोत जुगनुओं की झींगुर की ये झुनझुन।

किलकारी भरते हुये दूध से ये बच्चे,
निर्भीक उछलती हुई जवानों की ये टोली।
रति को शरमाती हुई चाँद सी ये शकलें,
संगीत चुराती हुई पायलों की ये बोली।

आल्हा की ये ललकार थाप ये ढोलक की,
सूरा मीरा की सीख कबीरा की बानी,
पनघट पर चपल गगरियों की छेड़छाड़,
राधा की कान्हा से गुपचुप आनाकानी।

क्या इन सब पर खामोशी मोत बिछा देगी,
क्या धुंध धुआँ बनकर सब जग रह जायेगा।
क्या कूकेगी कोयलिया कभी न बगिया में,
क्या पपीहा फिर न पिया को पास बुलायेगा।

जो अभी अभी सिंदूर लिये घर आई है,
जिसके हाथों की मेंहदी अब तक गीली है।
घूँघट के बाहर आ न सकी है अभी लाज,
हल्दी से जिसकी चूनर अब तक पीली है।

क्या वो अपनी लाड़ली बहन साड़ी उतार,
जा कर चूड़ियाँ बेचेगी नित बजारों में।
जिसकी छाती से फूटा है मातृत्त्व अभी,
क्या वो माँ दफनायेगी दूध मजारों में।

क्या गोली की बौछार मिलेगी सावन को,
क्या डालेगा विनाश झूला अमराई में।
क्या उपवन की डाली में फूलेंगे अँगार,
क्या घृणा बजेगी भौंरों की शहनाई में। 
चाणक्य मार्क्स एंजिल लेनिन गांधी सुभाष,
सदियाँ जिनकी आबाजों को दुहराती हैं।
तुलसी बर्जिल होमर गोर्की शाह मिल्टन
चट्टानें जिनके गीत अभी तक गाती हैं।

मैं सोच रहा क्या उनकी कलम न जागेगी,
जब झोपड़ियों में आग लगायी जायेगी।
क्या करबटें न बदलेंगीं उनकी कब्रें जब,
उनकी बेटी भूखी पथ पर सो जायेगी।

जब घायल सीना लिये एशिया तड़पेगा,
तब बाल्मीकि का धैर्य न कैसे डोलेगा।
भूखी कुरान की आयत जब दम तोड़ेगी,
तब क्या न खून फिरदौसी का कुछ बोलेगा।

ऐसे ही घट चरके ऐसी ही रस ढुरके,
ऐसे ही तन डोले ऐसे ही मन डोले।
ऐसी ही चितवन हो ऐसी कि चितचोरी।
ऐसे ही भौंरा भ्रमे कली घूँघट खोले।

ऐसे ही ढोलक बजें मँजीरे झंकारें,
ऐसे कि हँसे झुँझुने बाजें पैजनियाँ।
ऐसे ही झुमके झूमें चूमें गाल बाल,
ऐसे कि हों सोहरें लोरियाँ रसबतियाँ।
ऐसे ही बदली छाये कजली अकुलाए,
ऐसे ही बिरहा बोल सुनाये साँवरिया।
ऐसे ही होली जले दिवाली मुस्काये,
ऐसे ही खिले फले हरयाए हर बगिया।

ऐसे ही चूल्हे जलें राख के रहें गरम,
ऐसे ही भोग लगाते रहें महावीरा।
ऐसे ही उबले दाल बटोही उफनाए,
ऐसे ही चक्की पर गाए घर की मीरा।

बढ़ चुका बहुत अब आगे रथ निर्माणों का,
बम्बों के दलबल से अवरुद्ध नहीं होगा।
ऐ शान्त शहीदों का पड़ाव हर मंजिल पर,
अब युद्ध नहीं होगा अब युद्ध नहीं होगा।

गोपालदास नीरज