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Saturday, 16 August 2014

आज 16 अगस्त है !!!!


     आप सोच में पड़ जाएंगे कि आज की तारीख में ऐसा क्या है जिस पर यह चर्चा चल रही है। वाकई में देखा जाए तो इस दिन में कुछ खास नहीं है परंतु कल का दिन बड़ा ही खास था, आपके लिए, मेरे लिए, हम सब के लिए। कल स्वतन्त्रता दिवस/पर्व था जिस दिन हम सब में देश-भक्ति/ राष्ट्र-प्रेम का हमारे दिलों में जो सैलाब उमड़ पड़ता है, अवर्णनीय है। इस दिन हमारा राष्ट्र-प्रेम चरम पर होता है। हम अपने स्कूल/कॉलेज/दफ़्तरों/सोसायटी में इसका रंगारंग समारोह करते है। अपने वाहनों पर राष्ट्र-ध्वज की प्रतिकृति लगाते है। राष्ट्र-ध्वज को सलामी देते है, राष्ट्र-गीत गाते हैं, देशभक्ति गीत गुनगुनाते है। टीवी पर न्यूज़-चेनलों पर दिल्ली के/अपने राज्य के/अपने स्थानीय स्वतन्त्रता दिवस समारोह/स्वातंत्र्योत्सव को बड़े अहोभाव से निहारते है। कल हम सब ने भी यह सब अथवा इस में से कुछ न कुछ तो किया परंतु आज? आज 16 अगस्त है। आज दिन बदल गया, तारीख़ बदल गई।
     आज बड़ी सुबह मैंने कल के वाहन पर लगे राष्ट्र-ध्वज की प्रतिकृति को लावारिस पाया। यह क्‍या हुआ क्‍या राष्‍ट्रप्रेम एक ही दिवस के लिए था ? तो उत्‍तर है - हम सब यह महसूस करेंगे की राष्‍ट्र-प्रेम दिल में सिकुगया। देशभक्ति के गाने स्‍मृति से ओझल हो गये। मैं विद्यार्थी हूं, मैं आज स्‍कूल-कॉलेज जाते समय बिना लाइसेन्‍स वाहन चलाऊंगा। रास्‍ते में पान-तंबाकु-सिगारेट की दुकान पर रूका और व्‍यसन किया। कल तो सुना था इससे राष्‍ट्र को हानि है, परंतु आज तो चलता है। स्‍कूल कॉलेज बंक किया और बड़ी-बड़ी डिंगे हाँकी, आज तो कर सकते है - ठीक है अब तो छोडो यार।
     मैं एक नौकरीपेशा व्‍यक्ति हूं। जाते-जाते जल्‍दबाजी में ट्रेफिक-सिग्‍नल पर मैं कभी रूकता नहीं। पुलीसवाले ने यदि रोक लिया गया तो 100 रू. का पेनाल्टी देकर रसीद लेने के बजाय 50 रू. उसके हाथ में थमा कर आगे चल दिया । कल ऐसा होता तो रसीद लेते और मन ही मन कहते नियमों का पालन तो करना चाहिए। आज तो.... । किसी को अपना काम करने के लिए मुझे आउट ऑफ द वे जाकर उसका पक्ष लेने की बात के बदले अगर आज कुछ मिल जाता है तो .....।
     मैं एक कारोबारी हूं। मेरे यहाँ काम करनेवालों में से कुछ की तो उम्र 14 वर्ष से कम है। उनको वेतन देते समय मैं उनके दस्‍तखत/अंगूठा लेता हूं, उसके सामने लिखी राशि से उनको कम देता हूं। उनका पी.एफ. नहीं कटता, इंश्‍योरेंस नहीं करवाया, कौन झंझट पाले यार। टैक्स अफ़सर को गीफ्ट भेज दिया क्‍यूंकि मैं एकाउन्‍टस नहीं रखता। और भी बहुत कुछ है? छोडो ना यार आज तो 16 अगस्‍त है।
     कल का दिन बहुत महत्‍वपूर्ण था जानते हो क्यूँ ? क्‍योंकि कल के दिन से मुझे कुछ ऐसी स्‍वतंत्रताएँ मिली है जो समूचे विश्‍व के किसी राष्‍ट्र के नागरिक को नहीं मिली । जैसेकि राष्‍ट्र को गंदा करने की स्‍वतंत्रता -  मैं पान राष्‍ट्र के विकास के लिए खाता हूं और इसलिए इधर-उधर जिधर मेरी मर्ज़ी चले कहीं भी थूंक सकता हूं। मैं कुछ खा-पीकर उसका कूड़ा रास्‍ते में ट्रेन/बस/कार से बाहर मेरी मर्ज़ी कहीं भी फैक सकता हूं। मैं सार्वजनिक स्‍थान पर धूम्रपान कर सकता हूं, भले ही पास में खडे किसी भी व्‍यक्ति को उससे – पेसीव स्‍मोकिंग से आपत्ति हो। मैं गाडी/कार किसी भी लेन में/ कोई भी स्‍पीड पर चला सकता हूं, किसी को उडा भी सकता हूं और वहाँ से भाग भी सकता हूं।
     मैं एक राजनेता हूं। मुझे कुछ भी बोलने की छूट है। मैं प्रतिपक्ष के बारे में - उसके नेताओं के बारे में - उसकी नीतियों के बारे में कुछ भी बकवास कर सता हूं – इल्ज़ाम लगा सकता हूं। क्‍योंकि कल के दिन विशेष से मुझे इसकी आजादी मिली है।
     मैं एक एडवोकेट हूं। सच को झूठ और झूठ को सच साबित कर सकता हूं। (ये इथिक्‍स क्‍या होते हैं ?) मुझे तो कल के दिन से इसकी स्‍वतंत्रता मिली हुई है। मैं एक डॉक्टर हूं, मेरे पास आनेवाले मरीज़ को मैं जरूरी के साथ जरूरी न हो ऐसी दवाइयां भी देता हूं और जिसके लिए मुझे कोम्‍प्‍लीमेन्‍टरी देश-विदेश घूमना आदि मिलता है। आप ही बताओ मैं तो यह भूल भी जाउॅं परंतु एम.आर. और दवाई का दुकानदार दोनों ही मुझे भूलने भी नहीं देते।
     मैं विदेशों में घूमने जाता हूँ तो वहाँ की सफाई की तारीफ़ करता हूँ परंतु मेरे देश में न तो मैं सफ़ाई का ध्यान रखता हूँ और हमेशा यहाँ की सफ़ाई की निंदा करता हूँपता है यह सब क्यूँ है क्योंकि हम विश्व की सबसे दोगली और स्वार्थी प्रजा है। हम नेताओं की, अधिकारियों की, तंत्र की निंदा करते रहते है परंतु अपने कर्तव्यों का वहन करने में कोताही करते है। फिर हमारे नेता/अफ़सर/तंत्र हमारे जैसे ही होंगे, क्योंकि वे भी तो हम में से एक एक है और कहा जाता है न कि जैसा राजा वैसी प्रजाहमारा स्वतंत्र नागरिक के रूप में हर तरह से विकास हुआ है परंतु मानसिक विकास में अब भी हम पिछड़े हुए हैं। आज भी हम भारतीय होने के बजाय महाराष्ट्र में पहले मराठी/तमिलनाडू में तमिल/कश्मीर में कश्मीरी बन जाते हैं। हम हिंदुस्तानी होने के बजाय हिन्दू/मुस्लिम/सीख/ईसाई बन जाते हैं। हम झूठ-मूठ का अंग्रेज़ी बोलनेवाले के प्रति अहोभाव की नज़र से देखते है, परंतु शुद्ध हिन्दी/संस्कृत बोलने वाले के प्रति लघुता का भाव दिखाते है।
     स्वतंत्र राष्ट्र के स्वतंत्र नागरिक के रूप में हमें हमारे अधिकारों का तो ज्ञान है परंतु हमारे कर्तव्यों का बोध नहीं है या जान-बूझकर हम करना नहीं चाहते। अधिकार के साथ कर्तव्य (हक़ के साथ फर्ज़) जुड़े हुए हैं । इस बात पर नेहरू ने बहुत सुंदर बात कही थी परंतु आज के नेता से लेकर आम नागरिक तक के लोगों को इस से कोई सरोकार नहीं है।
     हमारी सोच केवल अपने तक ही सीमित होकर रह गई है। एक राष्ट्र के रूप में अच्छा विकास न होने का कारण हमारी सीमित सोच और नियत में कमी है। हम हमारी विविधता की प्रशंसा करते रहते हैं परंतु विविधता में एकता न होकर हम तितर-भितर होने लगे तो फिर इतिहास गवाह है उस राष्ट्र की अवनति ही हुई है। किसी को लगेगा इस में तो केवल बुराई ही बुराई है, हम में तो अच्छाई भी है, उसका जिक्र क्यूँ नहीं ? मेरा कहना है कि जब हम बीमार होते है तो रोग से पीड़ित अंग के प्रति ही हमारा ध्यान जाता है उस वक़्त हम यह नहीं कहते कि मेरे अन्य अंग तो सही काम कर रहे और इस देश के नागरिक के रूप में हमारी कमियाँ हमारा मर्ज़ बन चुकी है जिसका इलाज आवश्यक बन गया है। इस मर्ज़ का इलाज़ भी हम खुद ही है। अतः आज 16 अगस्त को भी हम 15 अगस्त मानें और व्यवहार में लाएँ यही मेरी सब से तह-ए-दिल से गुजारिश है।   

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