संस्कृत भाषा आर्य परिवार की भाषा है।
इसे भारत-युरोप परिवार भी कहते है। संस्कृत विश्व इतिहास की प्राचीनतम भाषाओं
में से एक है। युरोप की ग्रीक तथा लेटिन, मध्य एशिया की अवेस्ता तथा प्राचीन
फारसी इस प्राचीनतम भाषाओं के परिवार में से संस्कृत के साथ है। आर्य परिवार की
दो शाखाएं है: पश्चिमी तथा पूर्वीय। पूर्वीय शाखा में भी दो वर्ग है: भारतीय वर्ग
तथा इरानी वर्ग। भारतीय वर्ग में वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत तथा उसीमें से
उत्पन्न या विकसित हिन्दी, गुजराती, बंग्ला आदि भाषाएं शामिल है। वैदिक समय
में वेदों की रचना हुई। वेद न केवल धर्माचरण बतानेवाले ग्रंथ है परन्तु साथ ही वह
जीवन जीने की सही राह भी दिखाते हैं। वेद
शब्द का संस्कृत मूल शब्द ‘विद्’ से बना है, जिसका मतलब है ‘जानना’; अर्थ स्पष्ट है ‘वेद’ का मतलब ‘ज्ञान की पुस्तक’ (a data base
of knowledge)। वेदों से ही हमारे
आज के नैतिक मूल्य जैसे कि सदाचरण, सत्य, अहिंसा आदि का जन्म हुआ है। माना जाता
है कि इन्हें आकाशवाणी से सुनकर लिखा गया, अत: इन्हें ‘श्रुति’ भी कहते हैं। वेदों का ज्ञान ऋषियों को
उनकी अंतरात्मा से मिला,
इसलिए इन्हें ‘आगम’ भी कहा जाता है। वेद चार है : ऋग्वेद, यजुर्वेद,
सामवेद, अथर्ववेद -
- ऋग्वेद : यह सर्वप्रथम और सबसे बड़ा वेद है, जो 14 प्रकार के छंदों में 27 शाखाओं में विभक्त है। इसमें 10580 मंत्र 1,53,826 शब्द तथा 4,32,000 अक्षर हैं।
- यजुर्वेद : इसके दो भाग है - शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद को ‘वाजसनेय संहिता’ भी कहते है। इसमें 1900 मंत्र और 15 शाखाएं हैं। कृष्ण यजुर्वेद को ‘तैतिरीय संहिता’ भी कहा जाता है इसमें 18000 मंत्र और 86 शाखाएं हैं। यजुर्वेद मुख्यत: यज्ञ आदि से संबंधित है।
- सामवेद : यह वेद विविध छंदो के गायन से संबंधित है। इसके 1700 मंत्रों में से केवल 75 को छोडकर शेष सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं। यज्ञों के अवसर पर वैदिक संगीतज्ञ विविध छंद गाते हैं।
- अथर्ववेद : इस वेद के 6000 मंत्रों में अपार विषय वैविध्य है। इसकी 9 शाखाएं हैं। इस वेद में ब्रह्म विषयक वर्णन है।
वेदांग 6 हैं:
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष एवं निरूक्त। वेदों के उपरांत
उनके मंडल और ब्राह्मण ग्रंथ हुए। प्रत्येक वेद के अनेक ब्राह्मण ग्रंथ थे,
जिनमें से वर्तमान में कुछ ही उपलब्ध हैं। ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं:
शाखायन व ऐतरेय। यजूर्वेद के तीन ब्राह्मण ग्रंथ हैं: शतपथ ब्राह्मण, काण्व ब्राह्मण
व तैत्तरीय ब्राह्मण। सामवेद के ग्यारह ब्राह्मण
ग्रंथ हैं: आर्षेय, जैमिनी-आर्षेय, संहितोपनिषद ब्राह्मण, मंत्र ब्राह्मण, वंश ब्राह्मण, संविधान ब्राह्मण,
षडविंश ब्राह्मण, देवत् ब्राह्मण, ताण्ड्य ब्राह्मण, जैमिनीय ब्राह्मण, जैमिनीय उपनिषत् ब्राह्मण। अथर्ववेद का मात्र एक ही ब्राह्मण
ग्रंथ उपलब्ध है : गोपथ ब्राह्मण। सभी ब्राह्मण ग्रंथों मे यर्जुवेद का शतपथ ब्राह्मण
सुविख्यात है,
जिसमें 12000 ऋचाएं, 8000 यजुष् तथा 4000 समय हैं।
ब्राह्मण ग्रंथ के
उपरांत वैदिक समय में आरण्यक ग्रंथ और संहिताएं आदि भी रचे गये। संहिताओं की कुल
संख्या चार है। वैदिक परंपरा के आखिर में उपनिषद आते हैं, इसलिए इन्हें वेद + अंत भी कहा गया है। ‘उप’ का मतलब ‘पास’ और ‘नि: + सद’ का मतलब ‘बैठना’। ऋषि अपने शिष्यों को पास बिठाकर
ज्ञान देते थे,
अत: इनको ‘उपनिषद’ कहा गया। उपनिषदों को ब्रह्मविषयक
ग्रंथ भी कहे जाते हैं, जिनमें वेदों के रहस्य छोटी-छोटी आख्यायिकाओं के द्वारा
प्रस्तुत किए गए हैं। इनकी संख्या (111
से 220) के बारे में मतमतांतर है। इनमें से कुछ विख्यात
है, जैसे कठोपनिषद,
केनोपनिषद, इश उपनिषद,
मण्डूक उपनिषद, माण्डूक्य उपनिषद, तैतिरीय उपनिषद, ऐतरेय उपनिषद, छांदोग्य
उपनिषद, बृहदारण्यक उपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद, प्रश्नोपनिषद आदि।
तैतिरीय उपनिषद
के कुछ सूत्र काफी प्रसिद्ध है। ‘सत्यं
वद:’, ‘धर्मम् चर:’, ‘मातृदेवो भव:’, ‘पितृ देवो भव:’, ‘अतिथि देवो भव:’ आदि। मुण्डक उपनिषद का ‘सत्यमेव जयते’ भी काफी प्रसिद्ध है।
वेदकालिन साहित्य
में ‘स्मृतियों’ का भी बहुत महत्व है - (‘स्मृ’ का मतलब ‘स्मरण करना, याद करना’) वैदिक साहित्य के स्मरण में से स्मृतियों
का जन्म हुआ। स्मृतियों की संख्या भी निश्चित नहीं है, फिर भी इनमें से मनुस्मृति, याज्ञवाल्क्य
स्मृति, पाराशर स्मृति आदि प्रचलित है। मनुष्य जीवन (सभी 16 संस्कार) की जानकारी को मनुस्मृति में शामिल
किया गया है। परिवार, पत्नी, बच्चों से लेकर समाज के प्रत्येक
वर्ग, इंसान
की हर उम्र की कथाएं विस्तृत रूप से वर्णित है। यह अत्यंत सरल भाषा में
मार्गदर्शक ग्रंथ है जिसमें कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ति
तत्र देवता’ – ‘जिस
घर में नारी का उचित सन्मान है,
वहीं देवो का वास होता है’।
इस की कुछेक उक्तियां आज के दौर में शब्दश: अनुपालन योग्य नहीं है, अन्यथा यह
एक सुंदर ग्रंथ अवश्य है।
वेदकालिन साहित्य
के बाद ‘पुराण’ की रचना हुई। पुराण कुल 18 हैं, जिसमें
मुख्यत: मत्स्य, कूर्म, वराह, गरूड, शिव, देवी, भागवत आदि। पुराण काल के बाद
लौकिक साहित्य की रचना हुई जिसके अनेक स्वरूप है: महाकाव्य, नाटक, गद्यकाव्य, आख्यान,
गीति काव्य, चंपू आदि।
महाकाव्य
: ऋषि वाल्मिकी रचित रामायण में मानवजीवन के उच्चतम आदर्श मूल्य – आदर्श राजा, आदर्श
परिवार, कर्तव्य निष्ठा, सत्य परायणता, वचन पालन आदि का अत्यंत सुंदर वर्णन हैं।
जीवन के चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी महाभारत की कथा में आवरित हैं।
इसीमें युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश को श्रीमद्भगवत गीता
कहा जाता है।
इसके अलावा
कालिदास, भारवि, माघ, अश्वघोष, भट्टी, कुमारदास, श्रीहर्ष आदि ने महाकाव्य लिखे
हैं। संस्कृत साहित्य के पाँच सुप्रसिद्ध महाकाव्यों में दो कालिदास के ‘रघुवंशम’ तथा ‘कुमारसंभवम’ है। इसके अलावा ‘नैषधीय चरित’, ‘किरातारजुर्नीय’, ‘शिशुपालवध’ आदि विख्यात है। इसके उपरांत
उर्मिकाव्य, ऐतिहासिक काव्य तथा भर्तृहरी शतक की
रचना हुई। उर्मिकाव्य में कालिदास का ‘मेघदूत’
तथा ‘ऋतुसंहार’ विख्यात है। ऐतिहासिक महाकाव्य में
अश्वघोष का ‘बुद्धचरित’, बिल्हण का ‘विक्रमोकदेव चरित’ तथा कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ सुख्यात है। भर्तृहरी के तीन शतक ‘नीतिशतक’, ‘श्रृंगारशतक’, ‘वैराग्यशतक’ लोकप्रिय है।
नाटक: कालिदास,
भास, भवभूति, शुद्रक, विशाखदत्त, भट्टनारायण, हर्षदेव राजशेखर, जयदेव, कृष्णमिश्र
आदि ने नाटक लिखे है। कालिदास का ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ विश्वविख्यात है। तदुपरांत भवभूति का
‘उत्तररामचरित’ व भास का ‘स्वप्नवासवदत्ता’ अत्यंत प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, शुद्रक का ‘मृच्छकटिक’, विशाखदत्त का ‘मुद्राराक्षस’, भवभूति का ‘मालतीमाधव’ तथा जगन्नाथ पंडित के पॉंच लहरी काव्य
– जिनमें से ‘गंगा लहरी’, ‘करूणा लहरी’ ज्यादा प्रसिद्ध है।
गद्य साहित्य
– इसको आख्यान साहित्य भी कहते हैं। इसमें मुख्यत: नीतिकथाएँ व लोककथाएँ होती है। भारतीय साहित्य में नीतिकथाओं में पंडित विष्णु शर्मा की ‘पंचतंत्र’ तथा नारायण पंडित की ‘हितोपदेश’ प्रमुख है। दादीमा की कहानियां जो हमारे देश में
काफी प्रचलित है इन्ही से उत्पन्न हुई हैं। जबकि लोककथाओं में विक्रम-वेताल की
कहानियाँ, सिंहासन बत्तीसी आदि जनमानस में स्थान बनाएँ
हुए है।
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